एक— दूसरे को बिना जाने
पास— पास होना
और उस संगीत को सुनना
जो धमनियों में बजता है ,
उन रंगों में नहा जाना
जो बहुत गहरे चढ़ते— उतरते हैं !!
शब्दों की खोज शुरू होते ही
हम एक—- दूसरे को खोने लगते हैं
और उनके पकड़ में आते ही
एक—- दूसरे के हाथों से
मछली की तरह फिसल जाते हैं !!
हर जानकारी में बहुत गहरे
ऊब का एक पतला धागा छिपा होता है
कुछ भी ठीक से जान लेना
ख़ुद से दुश्मनी ठान लेना है !
कितना अच्छा होता है
एक— दूसरे के पास बैठ ख़ुद को टटोलना,
और अपने ही भीतर
दूसरे को पा लेना !
——– प्रसिद्ध कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
( संकलित )
—— राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !