दर्द का आकार दूना कर गये !
जानता हूँ फिर सुनाओगे मुझे मौलिक कथाएँ
शहर भर की सूचनाएँ , उम्र भर की व्यस्तताएँ,
पर जिन्हें अपना बनाकर , भूल जाते हो सदा तुम
वे तुम्हारे बिन , तुम्हारी वेदना किसको सुनाएँ ,
फिर मेरा जीवन उदासी का नमूना कर गए ,
तुम गए क्या शहर सूना कर गए !
मैं तुम्हारी याद के मीठे तराने बुन रहा था ,
वक़्त ख़ुद जिनको मगन हो , सांस थामे सुन रहा था
तुम अगर कुछ देर रुकते तो तुम्हें मालूम होता ,
किस तरह बिखरे पलों में मैं बहाने चुन रहा था ,
रात भर हाँ– हाँ किया पर प्रात में ना कर गए ,
तुम गए क्या शहर सूना कर गए !!
——- प्रसिद्ध कवि कुमार विश्वास
( संकलित )
—— राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !