” तुम गए क्या ..”

तुम  गए  क्या  शहर  सूना  कर  गये  ,

दर्द  का  आकार   दूना   कर   गये   !

 

जानता  हूँ  फिर  सुनाओगे  मुझे  मौलिक  कथाएँ

शहर  भर  की  सूचनाएँ  , उम्र  भर  की  व्यस्तताएँ,

पर  जिन्हें  अपना  बनाकर  , भूल  जाते  हो  सदा  तुम

वे  तुम्हारे  बिन  , तुम्हारी  वेदना  किसको  सुनाएँ  ,

फिर  मेरा  जीवन उदासी  का  नमूना  कर   गए  ,

तुम  गए  क्या  शहर   सूना  कर   गए   !

 

मैं  तुम्हारी याद  के  मीठे  तराने  बुन  रहा  था  ,

वक़्त  ख़ुद  जिनको  मगन  हो  , सांस  थामे  सुन रहा था

तुम अगर कुछ  देर  रुकते  तो  तुम्हें  मालूम  होता  ,

किस तरह  बिखरे  पलों में  मैं  बहाने  चुन  रहा  था  ,

रात  भर  हाँ– हाँ  किया  पर  प्रात  में  ना  कर  गए  ,

तुम  गए  क्या  शहर  सूना   कर   गए   !!

——-  प्रसिद्ध कवि  कुमार  विश्वास

( संकलित  )

 

——  राम  कुमार  दीक्षित  ,  पत्रकार   !

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