” प्रेम में प्राण में गान में गंध में “

प्रेम  में  प्राण  में  गान  में  गंध  में

आलोक  और  पुलक  में  हो  रहा  प्लावित

निखिल  द्विलोक  और  भूलोक  में

तुम्हारा  अमल  निर्मल  अमृत  बरस  रहा  झर– झर

 

दिक्– दिगंत  के  टूट  गए  आज  सारे  बंध

मूर्तिमान  हो  उठा  ,  जाग्रत   आनंद

जीवन  हुआ  प्राणवान  , अमृत  में  छक  कर  !

 

कल्याण  रस  सरवर  में  चेतना  मेरी

शतदल  सम  खिल  उठी  परम  हर्ष   से

सारा  मधु  अपना  उसके  चरणों  में  रखकर   !

 

नीरव  आलोक  में  ,  जागा  हृदयागंन  में

उदारमना  ऊषा  की उदित  अरुण  कांति  में

अलस  पड़े  कोंपल  का  आंचल  ढला  ,  सरक  कर   !

——-  प्रसिद्ध कवि  रवींद्रनाथ  टैगोर

( संकलित  )

 

———-  राम  कुमार  दीक्षित  ,  पत्रकार   !

 

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