बहुत पहले से उन कदमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ ज़िंदगी, हम दूर से पहचान लेते हैं !
तबियत अपनी घबराती है जब सुनसान रातों में
हम ऐसे में तेरी यादों की चादर तान लेते हैं !
हमारी हर नज़र तुझसे नई सौगंध खाती है
तो तेरी हर नज़र से हम नया पैग़ाम लेते हैं !
ख़ुद अपना फैसला भी इश्क़ में काफी नहीं होता
उसे भी कैसे कर गुज़रें , जो दिल में ठान लेते हैं !
तुझे घाटा ना होने देंगे कारोबार— ए– उल्फ़त में
हम अपने सर तेरा ऐ दोस्त हर नुकसान लेते हैं !!
———- फिराक गोरखपुरी
( संकलित )
——– राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !