” मिलन यामिनी “

चाँदनी  फैली  गगन  में  , चाह  मन  में  !

दिवस  में  सबके  लिए  बस  एक  जग  है

रात  में  हर  एक  की  दुनिया  अलग   है   !

 

कल्पना  करने  लगी  अब  राह  मन  में

चाँदनी  फैली  गगन  में  ,  चाह  मन   में   !

 

भूमि  का  उर  तप्त  करता  चंद्र  शीतल

व्योम  की  छाती  जुड़ाती  रश्मि  कोमल,

 

किंतु  भरती  भावनाएं  दाह  मन  में

चाँदनी  फैली  गगन  में,  चाह  मन  में  !

 

कुछ  अंधेरा, कुछ  उजाला, क्या  समा  है  !

कुछ  करो, इस  चाँदनी  में  सब  क्षमा  है   ,

 

किंतु  बैठा  मैं  संजोये  आह  मन  में  ,

चाँदनी  फैली  गगन  में, चाह  मन  में  !

 

चाँद  निखरा,  चंद्रिका  निखरी  हुई   है

भूमि  से  आकाश  तक  बिखरी  हुई  है   ,

 

काश  मैं  भी  यों  बिखर  सकता  भुवन  में

चाँदनी  फैली  गगन  में  , चाह  मन  में  !

———–  प्रसिद्ध कवि  हरिवंश राय बच्चन

( संकलित  )

———– राम  कुमार  दीक्षित  ,  पत्रकार  !

 

 

 

 

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