” छिप– छिप अश्रु बहाने वालों ” ( गीत के कुछ अंश )

छिप– छिप अश्रु बहाने वालों  , मोती व्यर्थ बहाने वालों

कुछ सपनों के मर जाने से  , जीवन नहीं मरा करता है !

सपना  क्या  है  , नयन  सेज  पर

सोया हुआ  आँख  का   पानी

और   टूटना  है  उसका  ज्यों

जागे कच्ची नींद  जवानी

गीली उमर बनाने वालों, डूबे बिना नहाने वालों

कुछ पानी के बह जाने से  , सावन नहीं मरा करता है  !

खोता  कुछ  भी नहीं  यहाँ  पर

केवल  जिल्द  बदलती  पोथी

जैसे  रात  उतार  चांदनी

पहने  सुबह  धूप  की  धोती

वस्त्र बदलकर आने वालों  , चाल बदलकर  जाने  वालों

चंद खिलौनों के खोने से, बचपन नहीं  मरा करता  है  !

लूट लिया माली  ने  उपवन

लुटी  न लेकिन  गंध  फूल  की,

तूफानों  तक  ने  छेड़ा  पर,

खिड़की  बन्द  न  हुई  धूल  की

नफरत गले लगाने वालों  , सब पर धूल उडाने वालों,

कुछ मुखड़ों की नाराज़ी से, दर्पण नहीं मरा करता है  !!

————प्रसिद्ध कवि   गोपालदास ” नीरज  ”

( संकलित  )

———— राम  कुमार  दीक्षित   , पत्रकार  !

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