महाकवि बिहारी लाल का जन्म 1603 के लगभग ग्वालियर में हुआ था ! वे जाति के माथुर चौबे थे ! उनका बचपन बुंदेलखंड में कटा और युवावस्था ससुराल मथुरा में व्यतीत हुई ! उनकी कविता व दोहों का विषय श्रृंगार है जिसके संयोग और वियोग दोनो पक्षों का वर्णन उन्होंने किया है !
सतसैया के दोहरा ज्यों नावक के तीर
देखन में छोटे लगे , घाव करें गंभीर
यहाँ कहा गया है कि बिहारी के दोहे , नावक नाम के तीर– निर्माता के तीर के बराबर हैं ! उसके तीर् दिखने में छोटे होते थे , लेकिन तीखे होते थे ! उसी तरह बिहारी जी के दोहे भी हैं !
मेरी भवाबाधा हरौ , राधा नागरि सोय
जा तन की झाईं परे , श्याम हरित दुति होय
राधा जी के पीले शरीर की छाया नीले कृष्ण पर पड़ने से वे हरे लगने लगते हैं ! दूसरा अर्थ है कि राधा की छाया पड़ने से कृष्ण harit ( प्रसन्न ) हो उठते हैं ! श्लेश अलंकार का सुन्दर उदाहरण है !
कब को टेरत् दीन ह्वे , होत न श्याम सहाय
तुम हूँ लागी जगत गुरु , जगनायक् जग बाय
हे श्याम, मैं कब से दीन होकर तुम्हें पुकार रहा हूँ किन्तु आप मेरी सहायता नहीं कर रहे हैं ! हे जगत — गुरु, जगनायक् क्या आपको भी इस संसार की हवा लग गई है !
( संकलित )
———– राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !