” पालन पोषण करने वाले के सामने कैसा अहंकार “

न्यायवादी गुरुदास वांदोपाध्याय ने विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की प्रशंसनीय पहल की थी  ! वह जीवन भर निष्ठा— पूर्वक महिला सशक्तिकरण के काम में जुटे रहे  !  वास्तव में, बालक गुरुदास जब छह महीने के थे, तभी उनकी माता का स्वर्गवास हो गया था  ! बाद में एक दायी ने गुरुदास को अपना दूध पिलाकर पाला था  ! बड़े होकर इन्होंने न्याय— कर्त्ता के रूप में नाम कमाया  !

एक बार न्यायाधीश सर गुरुदास कलकत्ता हाई कोर्ट की अदालत में एक मुकदमे की सुनवाई कर रहे थे कि अचानक उनकी नज़र न्यायालय के दरवाजे पर टिक गई  ! उन्होंने देखा कि एक बुढ़िया गंगा स्नान करके लौटती हुई अपने भीगे वस्त्रों में ही कक्ष के भीतर घुसने का प्रयास कर रही थी  और अदालत का चपरासी उसे अन्दर आने से रोक रहा था  ! उस दृश्य को देखते ही एकाएक न्यायाधीश की स्मृति में कोई विचार कौन्धा  ! उन्होंने बुढ़िया माता को पहचान लिया  ! बचपन में वह गुरुदास की धाय माँ रह चुकी थी  ! उन्होंने फ़ौरन मुकदमा बीच में ही रोक दिया और वह तुरंत कुर्सी छोड़कर स्वयं दरवाजे पर जा पहुंचे  ! वहाँ जाकर उन्होंने विनम्रता से झुककर अपनी धाय माँ के पाँव छुए और फिर सबको  गर्व के साथ बताया कि, ” देखिये  , यह मेरी माँ हैं  ! बचपन इन्होंने अपना दूध पिलाकर मुझे बड़ा किया है  ! जज साहब ने माँ जी को ले जाकर अपने चैंबर में बिठाया और फिर अदालत की कार्यवाही शुरू करने के आदेश दिये  ! इस प्रसंग से हमें भी यही सीख मिलती है कि जो  हमारा पालन पोषण करते हैं, उनके सामने कभी अपना अहंकार नहीं दिखाना चाहिये  बल्कि उनके चरण छूकर आशीर्वाद लेना चाहिए  !

 

————-  राम  कुमार दीक्षित  , पत्रकार  , पुणे  !