रामनाथ नगर के बाहर एक कुटिया में अपनी पत्नी के साथ रहते थे ! एक दिन जब वे विद्यार्थियों को पढ़ाने जा रहे थे ! उनकी पत्नी ने उनसे पूँछा , आज भोजन क्या बनेगा ? घर में एक मुट्ठी चावल ही बचा है ! राम नाथ ने पत्नी की ओर पल भर के लिए देखा और बिना कोई उत्तर दिये चले गए ! भोजन के समय जब उन्होंने थाली में थोड़े से चावल और उबली हुई कुछ पत्तियाँ देखीं तो पत्नी से पूँछा , भद्रे , यह स्वादिष्ट साग किसका है ? पत्नी बोली , मेरे पूंछने पर आपकी दृष्टि इमली के पेड़ की ओर गई थी ! मैंने उन्हीं पत्तों का साग बनाया है !
रामनाथ बड़े निश्चिंत होकर बोले , इमली के पत्तों का साग बड़ा स्वादिष्ट होता है ! तब तो हमें भोजन की कोई चिन्ता ही नहीं रही ! जब नगर के राजा शिवचंद्र को रामनाथ की गरीबी का पता चला तो उन्होंने उनके सामने नगर में आकर रहने का प्रस्ताव रखा , किन्तु रामनाथ ने मना कर दिया ! तब राजा ने स्वयं उनकी कुटिया में जाकर यह बात पूंछने का निर्णय लिया ! हालांकि राजा यह समझ नहीं पा रहे थे कि यह बात कैसे पूँछे ! राजा कुटिया में आये और कुछ देर के बाद उन्होंने रामनाथ से पूँछा , आपको किस चीज का अभाव है ? रामनाथ ने उत्तर दिया महाराज , इसके बारे में मेरी पत्नी ही बात सकती है ! तब राजा ने वही बात, उनकी पत्नी से पूँछा ! पत्नी बोली, राजन ! मेरी कुटिया में कोई अभाव नहीं है ! जल का मटका , अभी फूटा नहीं है और मेरे हाथ में जब तक चूड़ियाँ हैं , मुझे कोई अभाव नहीं है ! सीमित साधनों में ही संतोष की अनुभूति हो तो जीवन आनंदमय हो जाता है ! उस देवी की बातें सुनकर राजा उनके समक्ष श्रृद्धा से झुक गये ! कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि हमें भी जीवन में संतोष धारण करने की कला अवश्य आनी चाहिये जिससे जीवन जीने की विधि को हम और सरल बना सकें !
——— राम कुमार दीक्षित, पत्रकार, पुणे !