” दादी माँ “

एक दादी माँ  10 साल से अकेली रह रही हैं  ! लेकिन मन में अकेलापन कभी नहीं बसाया  ! सुबह से शाम तक अपने को व्यस्त रखती हैं  ! अपने सारे काम ख़ुद ही करती हैं  !  दादी को किताबें पढने में भी बहुत रुचि है  ! धार्मिक पुस्तकें दादी बहुत ध्यान से पढ़ती हैं  ! दोपहर  2 बजे से अपने घर के आँगन में दरी बिछा लेती हैं  ! आस पास रहने वाली औरतें भी वहाँ आ जाती हैं  ! शुरुवात भजन– कीर्तन से होती है  ! फिर कभी रामचरित मानस का पाठ सुनाती हैं तो कभी भागवत कथा सुनाती हैं  ! इस तरह शाम होने तक वहाँ चहल– पहल रहती है  !

दादी माँ सबके दुःख— सुख सुनती हैं  ! कभी कभी सलाह— मशविरा भी देती हैं  ! कभी सांत्वना देकर आँसू भी पोंछ देती हैं  ! गली में खेलने वाले बच्चों में कभी यदि झगड़ा हो जाता है तो बच्चे दादी माँ के पास आकर फरियाद करते हैं  ! दादी कभी प्यार से तो कभी डाँट से सुलह करा देती हैं  ! आस पास के घरों में झगड़ा होने पर वे भी दादी के पास आ जाते हैं  ! दादी उन्हें भी समझाकर सुलह करा देती हैं  ! इस तरह दादी पूरे मोहल्ले की दादी माँ हो गई हैं  ! सच में  ,दूसरों के सुख— दुःख में काम आने पर जो खुशी मिलती है  ! वह अपने सारे दुःख भुला देती है  ! दादी की यही सीख है कि लोगों के कष्ट मिटाने का प्रयास करते रहो  ! दूसरों की जो बन पड़े सेवा करते रहो  ! यही बहुत बड़ी  परमात्मा की प्रार्थना है क्यों कि परमात्मा सभी के हृदय में निवास करते हैं  !

 

——– राम कुमार दीक्षित, पत्रकार, पुणे  !