गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में कुछ प्रसंग बड़े विशेष रूप से लिखे हैं ! वह केवल दृश्यों और पात्रों का ही वर्णन भर नहीं करते ! उनकी खूबी ये है कि वह पक्तियों के बीच में से कभी– कभी गहन संदेश भी देते हैं ! राम राज्य में श्री राम के परिवार का वर्णन किया है ! श्री राम की संतानों की भी चर्चा की है ! एक दोहे में गोस्वामी तुलसीदास जी ने अद्भुत संदेश दिया है —— ” ज्ञान गिरा गोतीत अज माया मन गुन पार, सोइ सच्चिदानंद घन कर नर चरित उदार !
“जो ज्ञान, वाणी और इंद्रियों से परे और अजन्मा है और माया, मन और गुणों के परे है, वही सच्चिदानंद घन भगवान् श्रेष्ठ नर लीला करते हैं ” इस दोहे में ईश्वर के गुणों का वर्णन करते हुए लिखा है कि पूर्ण समर्थ होते हुए भी ईश्वर नर लीला करते हैं ! ये जो नर लीला शब्द है , ये हमें परमात्मा की तरफ से बहुत बड़ा आश्वासन है !
गोस्वामी तुलसीदास जी कह रहे हैं कि परमात्मा ने हमारे भीतर ईश्वर होने की सारी संभावनाएं मौजूद कर रखी हैं ! बस यही फर्क है मनुष्य और पशु होने में ! भगवान् भी पूर्ण समर्थ होते हुए संसार के कल्याण के लिए मानव रूप धारण करते हैं और नर लीला करते हुए जगत का कल्याण करते हैं ! परमात्मा ने स्वयं भगवद् ग्रंथों में कहा है कि मानव के हृदय में मैं आत्मस्वरूप में विद्यमान हूँ ! मनुष्य को अपने आत्मस्वरूप को जानने के लिए ज्ञान, कर्म और भक्ति मार्ग पर चलकर अपने स्वरूप का अनुसंधान करते ही रहना चाहिए !