कुछ कर गुजरने के लिए
मौसम नहीं , मन चाहिए !
थककर नहीं बैठो प्रतीक्षा कर रहा कोई कहीं
हारे नहीं जब हौंसले
तब कम हुए सब फ़ासले
दूरी कहीं कोई नहीं
केवल समरपण चाहिए !
हर दर्द जूठा लग रहा सहकर मज़ा आता नहीं
आँसू वही आँखे वही
कुछ हैं गलत कुछ हैं सही
जिसमें नया कुछ दिख सके
वह एक दर्पण चाहिए !
राहें पुरानी पड़ गयीं आखिर मुसाफिर क्या करे !
संभोग से सन्यास तक
आवास से आकाश तक
भटके हुए इंसान को
कुछ और जीवन चाहिए !
कोई न हो जब साथ तो एकांत को आवाज़ दे !
इस पार क्या उस पार क्या
पतवार क्या मंझधार क्या !
हर प्यास को जो दे डुबा
वह एक सावन चाहिए !
कैसे जियें कैसे मरें यह तो पुरानी बात है !
जो कर सकें आओ करें
बदनामियों से क्या डरें
जिसमें नियम—- संयम न हो
वे प्यार के क्षण चाहिए !
कुछ कर गुजरने के लिए मौसम नहीं, मन चाहिए !!
———— रमानाथ अवस्थी
( संकलित )
————- राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !