अरविंद घोष एक महान शिक्षाविद् एवं दार्शनिक थे ! वे अपने शैक्षिक विचारों को अपनी पुस्तक ” नैशनल सिस्टम ऑफ एजुकेशन ” में व्यक्त किये हैं ! उपनिषद एवं वेदांत के मौलिक सार तत्व उनके जीवन दर्शन के आधार थे ! उन्होंने आध्यात्मिक अभ्यास, योग तथा ब्रम्ह — चर्य को अपने जीवन में विशेष महत्व दिया ! एक आदर्शवादी के रूप में अरविंद घोष का शिक्षा दर्शन आध्यात्मिक तपस्या, योग तथा ब्रम्हचर्य के अभ्यास पर आधारित है ! उन्होंने माना कि यदि कोई व्यक्ति शिक्षा के सभी तीनों पक्षों को प्राप्त करता है तो वह निश्चित रूप से स्वयं को पूर्ण विस्तार तक विकसित कर सकता है !
अरविंद घोष के मूलभूत शैक्षिक विचारों को निम्नलिखित पंक्तियों से बताया जा सकता है:—
1—– शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होना चाहिए !
2—– बच्चे को सभी मानसिक योग्यताओं तथा मनोविज्ञान के अनुरूप प्रदान की जानी चाहिए !
3—– शिक्षा का लक्ष्य अध्यात्म की प्राप्ति होनी चाहिए !
4—- शिक्षा के माध्यम से इंद्रियों का प्रशिक्षण तथा अंतःकरण का विकास होना चाहिए !
5—- शिक्षा का मूलभूत आधार ब्रम्हचर्य होना चाहिए !
6—– बच्चे को संपूर्ण मानव बनाने के लिए शिक्षा को उसके सभी आनुवंशिक शक्तियों को विकसित करना चाहिए !
पाठ्यचर्या में समाविष्ट विषय बच्चे के अनुरूप होने चाहिए ! उसके अनुसार पाठ्यचर्या को बच्चे के शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक विकास में सहायक होना चाहिए ! उन्होंने सुझाया कि पाठ्यचर्या रुचिकर होनी चाहिये तथा इसे बच्चे को अध्ययन के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए !
———– महान दार्शनिक अरविंद घोष
( संकलित )
———–राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !