” कसमें वादे प्यार वफ़ा सब, बातें हैं बातों का क्या “

कसमें वादे प्यार वफ़ा सब, बाते हैं बातों का क्या ,

कोई किसी का नहीं ये झूठे, नाते हैं नातों का क्या  !

होगा मसीहा सामने तेरे

फिर भी न तू बच पायेगा,

तेरा अपना खून ही आख़िर

तुझको आग लगायेगा  ,

आसमान में उड़ने वाले मिट्टी में मिल जायेगा

कसमें वादे प्यार वफ़ा सब, बाते हैं बातों का क्या  !!

 

सुख में तेरे साथ चलेंगे

दुःख में सब मुख मोड़ेंगे,

दुनिया वाले तेरे बनकर

तेरा ही दिल तोड़ेंगे

देते हैं भगवान् को धोख़ा, इंसान को क्या छोड़ेंगे,

कसमें वादे प्यार वफ़ा सब, बाते हैं बातों का क्या  !!

1967 में रिलीज़ फिल्म उपकार ने कलाकार मनोजकुमार को भारत कुमार की संज्ञा दिलाई थी  ! फिल्म को अपार लोकप्रियता हासिल हुई थी  !  इस गीत के बोल इंदीवर् ने लिखे थे जबकि कल्याण जी आनंद जी ने इसे संगीत से सजाया था  ! गीत का सार है कि इस   अनजानी दुनिया में अधिकांश कस्मे– वादे सिर्फ कोरे वादे ही होते हैं  ! असल जिंदगी से उनका कोई वास्ता नहीं है  ! रिश्ते नाते इस रंग बदलती दुनिया में कोई महत्व नहीं रखते हैं  !

गीत में आगे यह संदेश दिया गया है कि आप कितने भी बड़े हो जाएं पर अपना पाँव ज़मीन पर ही रखना  ! शोहरत और दौलत पल भर में नष्ट भी हो सकते हैं  ! आसमान में उड़ने वाले भी मिट्टी में ही मिलते हैं  अर्थात ज्यादा अहंकार इंसान का पतन करा ही देता है  , इसलिए अहंकार से हर दशा में बचना चाहिए  !

गीत में यह भी कहा गया है कि सुख में सभी साथी हो जाते हैं लेकिन आपके दुःख में आपकी सहायता करने वाले बहुत कम ही लोग मिलेंगे  ! गीत यह भी कहता है कि पहले आदमी नज़दीक आता है और अपना बनकर आपका दिल तोड़ ही देता है  ! इंसांन तो आजकल भगवान् को भी धोख़ा देने की नियत रखते हैं तो इंसान को तो पलक झपकते ही धोख़ा दे देंगे  !

गीत का नैतिक पक्ष यह है कि इस रंग बदलती दुनिया में कोई अपना नहीं है  ! आदमी अंततः अकेला ही है  ! लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि सभी से ध्यान हटा लिया जाए  ! हमें  अपना कर्म करते हुए सबका साथ देते हुए सबके लिए उपयोगी बनना है  ! सभी के सुख और दुःख में साथ देना है  ! लोगों की भरपूर मदद करनी है  ! यह संसार परमात्मा की रचना है  ! हमें लोगों के जीवन में उत्साह भरना है  ! लोगों को जीवन जीने के लिए प्रेरणा देनी है , तभी हमारा जीवन सार्थक होगा  ! यह गीत फिल्म की सिचुएशन पर लिखा गया है  ! फिल्म में दो भाईयों के बीच स्वार्थ और निस्वार्थ भाव को बेहतरीन ढंग से पेश किया गया है  ! हमें सबके साथ  अपनत्व  का बर्ताव करना है, तभी हमारा जीवन सार्थक होगा  !

राम कुमार दीक्षित, पत्रकार  !