महान कवि एवं संत श्री सूरदास की भावान्जलि ———————————————————-
ऊधौ, मन न भये दस बीस
एक हुतो सो गयो श्याम संग, को अवराधै ईश !!
सिथिल भई सबहीं माधौ बिनु, जथा देह बिनु सीस !
स्वासा अटकिरहि आसा लगि, जीवहि कोटि बरीस् !!
तुम तौ सखा श्यामसुंदर के, सकल जोग के ईस !
सूरदास, रसिकंन की बतिया पुरवो मन जगदीस !!
सन्त सूरदास कह रहे हैं कि जब श्रीकृष्ण अपने सखा ऊधौ को गोपियों के पास अपना संदेश देने भेजते हैं तो ब्रजभूमि में ब्रह्म ज्ञान देने गए ऊधव को ब्रज की गोपियों ने ही सत्य का बोध करवा दिया ! गोपियाँ ऊधौ से कहती हैं कि हे ऊधौ जी, हम सभी के पास दस या बीस नहीं बल्कि एक ही मन है जो बहुत पहले ही कृष्ण के साथ जा चुका है ! कृष्ण के चले जाने के बाद हम सभी का मन शिथिल हो गया है ! अब तो शरीर ने भी काम करना बंद कर दिया है और अब तो हम बिना मन के जीवन जी रहे हैं !
गोपियाँ आगे ऊधौ जी से कहती हैं कि हम सभी गोपियाँ अब इसी आश में अपनी साँसें गिन रही हैं कि श्री कृष्ण करोड़ों वर्ष तक जीवित रहें तथा फिर से हम गोपियों को अपने दर्शन करवायें ! गोपियाँ ऊधौ से यह भी कहती हैं कि हे ऊधौ जी, तुम तो श्री कृष्ण के सखा हो और नाना प्रकार की विद्याओं के ज्ञाता भी हो , तुम हम गोपियों की व्यथा क्यों नहीं समझ रहे हो ! संत सूरदास जी अपनी रचना में भगवान् श्री कृष्ण से प्रार्थना करते हैं कि वे इन गोपियों की इच्छाओं को अवश्य पूरा करें ! गोपियों ने ऊधौ जी को यह अनुभव करा ही दिया कि प्रेम से ही परमात्मा को पाया जा सकता है !
राम कुमार दीक्षित , पत्रकार , पुणे !