स्वामी विवेकानंद को शिकागो जाना था ! श्री रामकृष्ण परमहंस की पत्नी शारदामणि से वह विदेश जाने की इजाजत मांगने के लिए गए ! कहते हैं कि उस समय शारदामणि किचन में कुछ कार्य कर रही थी ! विवेकानंद ने उनके समक्ष उपस्थित होकर कहा कि मैं विदेश जाना चाहता हूँ ! आपसे इसकी इजाजत लेने आया हूँ ! माता ने कहा कि यदि इजाजत नहीं दूँगी तो क्या तुम नहीं जाओगे ? यह सुनकर विवेकानंद कुछ नहीं बोले !
तब शारदामणि ने इशारे से कहा कि अच्छा एक काम करो, वो सामने चाकू रखा है, जरा मुझे दे दो ! सब्जी काटना है ! विवेकानंद ने चाकू उठाया और माता को दे दिया ! तभी माता ने कहा तुमने मेरा यह काम किया है, इसलिए तुम विदेश जा सकते हो ! विवेकानंद को कुछ समझ में नहीं आया ! तब माता ने कहा कि यदि तुम चाकू को उसकी नोक पकड़कर देने के बजाय मूठ पकड़कर उठाकर देते तो मुझे अच्छा नहीं लगता लेकिन तुमने उसकी नोक पकड़ी और फिर मुझे दिया ! मैं समझती हूँ कि तुम मन, वचन और कर्म से किसी का बुरा नहीं करोगे, इसलिए तुम विदेश जा सकते हो ! इस प्रसंग से हमें यही सीख मिलती है कि हमारी छोटी छोटी बातों और क्रियाओं से यह पता चल जाता है कि हमारे मन में दूसरों के प्रति क्या भाव हैं ! इसलिए सदैव अपने अच्छे आचरण से दूसरों के प्रति सकरात्मक विचार रखने चाहिए जिसमें सबका कल्याण निहित होता है !
राम कुमार दीक्षित, पत्रकार !