” प्रेम गली अति सांकरी, जामे दो न समाय “

संत कबीर दास जी के दोहे का गूढ़ रहस्य                       —————————————————-

जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नाँहि  !
प्रेम गली अति सांकरी, जामे दो न समाय   !!

संत वचन है कि जब तक मन में अहंकार था  ! तब तक परमात्मा से मिलन नहीं हुआ  ! जब मेरा अहम समाप्त हुआ, तभी परमात्मा मिले  ! जब परम तत्व से मिलन हुआ तो अहंकार स्वतः नष्ट हो गया  ! परम की सत्ता का बोध तभी हुआ  जब अहंकार गया  ! प्रेम में द्वैत भाव नहीं हो सकता— प्रेम की संकरी— पतली गली में एक ही समा सकता है,   अहम या परम  ! परम या  प्रियतम परमात्मा की प्राप्ति के लिए अहं का विसर्जन आवश्यक है  !

 

अहंकार अपने इतने रूप बदल लेता है कि उसको पहचानना बड़ा मुश्किल हो जाता है  ! प्रेम तो समर्पित होने के लिए व्याकुल रहता है जबकि अहंकार आधिपत्य चाहता है  !  समाज में कितने धार्मिक संगठन चल रहे हैं जिनमें यही सिखाया जाता है कि अपनी मैं को त्यागो और परमात्मा से लौ लगाओ लेकिन मैं इतनी आसानी से जाने वाली नहीं है  !  दान का अभिमान, सेवा करने का अभिमान और तो और सेवा करने में भी आगे पीछे का अभिमान देखा गया है  ! अहंकार छोड़ देने से जाने वाला होता तब क्या था, तब तो हर व्यक्ति अहंकार से  शून्य होता  ! परमात्मा सब जानता है कि तुम्हारा प्रेम भी दिखावे का है  ! संत वचन है कि सतगुरु ने जो रास्ता दिखाया है  , उसको आचरण में तो लेकर आओ  ! सतगुरु के बताये रास्ते पर चलने से ही अहंकार जा सकता है  !  अहंकार कभी अपने को छोटा नहीं मान सकता  !  ऐसे लोग  दूसरों में खूब कमियाँ निकालते हैं  ! निंदा रस में भी खूब आनंद लेते हैं , इससे सिद्ध होता है कि  छुपा हुआ अहंकार अन्दर बैठा है अभी दो दिख रहे हैं   !   अहंकार जाने के बाद परम ही अनुभव में आयेगा और परम के प्यार का स्वाद थोड़ा चखने में आ जाए तो  फिर अहंकार का पता ही नहीं चलेगा  !

जब तक दो का भेद कायम है, तब तक अहम का पसारा है  ! समाज में अहम का ही बोलबाला है  ! हम किसी से कम नहीं  ! जरा — ज़रा सी बात पर झगड़े हो जाते हैं  जबकि सबको पता है कि समाधान प्रेम से ही निकल सकता है  ! संत कबीर दास जी का कितना सार गर्भित कथन है कि ” प्रेम गली अति सांकरी— लेकिन परमात्मा को भी लोग अहम के साथ पाना चाहते हैं जो मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है  ! अहम का विसर्जन हुआ नहीं कि वह परम सत्ता आपको आपके भीतर ही  अनुभव कराने में देर नहीं लगायेगी  क्यों कि परम आपसे दूर है ही नहीं  ! बस अपने को उस परमात्मा के प्रति समर्पित करके तो देखिये  ! परमात्मा आपको आलिंगन में लेने के लिए तैयार हैं  लेकिन हम अपना मुख दूसरी ओर मोडे हुए  हैं  !

राम कुमार दीक्षित  , पत्रकार  !