यह पपीहे की रटन है!
बादलों की घिर घटायें,
भूमि की लेती बलाएँ ,
खोल दिल देती दुआएँ–
देख किस उर में जलन है
यह पपीहे की रटन है !
जो बहा दे नीर आया,
आग का फिर तीर आया ,
वज्र भी बेपीर आया —
कब रुका इसका वचन है !
यह पपीहे की रटन है !
यह न पानी से बुझेगी ,
यह न पत्थर से दबेगी ,
यह न शोलों से डरेगी–
यह वियोगी की लगन है !
यह पपीहे की रटन है !!
———— हरिवंशराय बच्चन
( संकलित )
राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !