” प्राण, कह दो, आज तुम मेरे लिए हो ! “

प्राण,   कह  दो, आज  तुम  मेरे  लिए  हो  !

मैं  जगत  के  ताप  से  डरता  नहीं  अब  ,

मैं  समय  के  शाप  से  डरता  नहीं  अब  ,

आज  कुंतल  छाँह  मुझ  पर  तुम  किये  हो

प्राण,  कह  दो,  आज  तुम  मेरे  लिए  हो   !

 

रात  मेरी,  रात  का  शृंगार  मेरा  ,

आज  आधे  विश्व  से  अभिसार  मेरा,

तुम  मुझे  अधिकार  अधरों  पर  दिये  हो

प्राण  कह  दो,  आज  तुम  मेरे  लिए  हो   !

 

वह  सुरा  के  रूप  से  मोहे  भला  क्या  ,

वह  सुधा  के  स्वाद  से  जाए  छला  क्या  ,

जो  तुम्हारे  होंठ  का  मधु–विष  पिये  हो  ,

प्राण,  कह  दो,  आज  तुम  मेरे  लिए  हो  !

 

मृत –सजीवन  था  तुम्हारा  तो  परस  ही,

पा  गया  मैं  बाहु  का  बंधन  सरस  भी  ,

मैं  अमर  अब मत  कहो  केवल  जिये  हो  ,

प्राण  कह  दो, आज  तुम  मेरे  लिए  हो  !

————– हरिवंश राय  बच्चन

( संकलित  )

 

राम कुमार दीक्षित, पत्रकार   !