वक़्त तुमने मुझे यूँ झुका तो लिया
हौसलों को मेरे न डिगा पाओगे !!
पंख काटे हैं तुमने बेशक मेरे ,
पर गगन को न मुझसे बचा पाओगे !!
चाहे कांटे लगा लो चारों ओर तुम
फूल खुशियाँ मेरी न छुपा पाओगे !!
वक़्त तुमने मुझे यूँ झुका तो लिया ,
हौसलों को मेरे न डिगा पाओगे !!
आज मीठे हो तुम और खारा हूँ मैं
है अंधेरा बहुत बेसहारा हूँ मैं !!
अपनी रण की तो ये शुरुआत है ,
तुम न जीते अभी और न हारा हूँ मैं !!
तुमने छीनी है मुझसे महफ़िल भले ,
गीत मुझसे न मेरे चुरा पाओगे !!
वक़्त तुमने मुझे यूँ झुका तो लिया ,
हौसलों को न मेरे डिगा पाओगे !
( संकलित )
——- राम कुमार दीक्षित , पत्रकार !