” इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है “

इस नदी की धार में ठंडी हवा  आती  तो  है  ,

नाव  जर्जर  ही सही, लहरों  से  टकराती  तो है  !

 

एक   चिनगारी  कहीं  से  ढूँढ   लाओ  दोस्तों  ,

इस  दिये  में  तेल  से  भीगी  हुई   बाती  तो  है  !

 

एक खंडहर  के  हृदय — सी  , एक  जंगली  फूल— सी,

आदमी  की  पीर  गूंगी  ही  सही  , गाती  तो   है   !

 

एक  चादर  साँझ  ने  सारे   नगर  पर   डाल  दी  ,

यह  अंधेरे  की  सड़क  उस  भोर  तक  जाती  तो  है  !

 

निर्वसंन  मैदान  में  लेटी  हुई  है  जो  नदी  ,

पत्थरों  से  , ओट  में  जा– जा के  बतियाती  तो  है  !

 

दुख  नहीं  कोई  कि  अब  उपलब्धियों  के  नाम  पर  ,

और  कुछ  हो  न  हो  ,  आकाश — सी  छाती  तो  है  !

——– प्रसिद्ध कवि  दुष्यंत कुमार

(  संकलित  )

——- राम कुमार  दीक्षित  ,  पत्रकार  !